
- काॅवर झील जिसे स्थानीय भाषा में कावर ताल भी कहा जाता है। बिहार राज्य के बेगूसराय जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 22 किमी उत्तर मंझौल में स्थित है। इस झील और झील के आसपास के नमभूमि को बिहार सरकार के द्वारा 1989 में पक्षी अभयारण्य का दर्जा दिया गया था। झील के निकट ही जयमंगल गढ़ के नाम से प्रसिद्ध एक मंदिर भी स्थित है जिसे जानकारों के मुताबिक पाल वंश काल से ही एक किले के रूप में स्थापित माना जाता है।यह झील जैव विविधताओं से भी परिपूर्ण है।यह गंगा की सहायक नदी गंडक के घुमावदार बहाव के कारण बनी है।एक समय इस स्थल पर गंभीर रूप से विलुप्त प्रजातियाँ निवास करती थी जिसमें दो जल पक्षी मिलनसार लैपिंग, बेयर पोचार्ड तथा तीन गिद्ध एक लाल सिर वाले,एक सफेद पूॅछ वाले और एक भारतीय गिद्ध शामिल थे।स्थानीय लोग बताते हैं कि लगभग दो दशक पहले तक इस झील में सैकड़ो देशी व विदेशी पक्षियों का ठंड के मौसम में जमावड़ लगा रहता था।नब्बे के दशक में साइबेरियन सारस को भी यहा देखा गया था। इस झील से उत्तरी बिहार का एक बड़ा हिस्सा बहुत प्रकार से लाभान्वित होता था। झील के किनारे ऊपरी जमीन पर गन्ने मक्का, जौ आदि की फसलों से काफी अच्छी पैदावार होती थी। हजारों की संख्या में मछुआरे झील से मछली पकड़कर अपना गुजर-बसर करते थे।समय के साथ कम वर्षा गर्मियों के मौसम में झील में जल की कमी तथा अतिक्रमण एवं सरकारी उदासीनता के कारण झील एक समय विलुप्त होने के कगार पर थी।नई दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया के एक शोध में झील के आकार पर कुछ वर्ष पूर्व विश्लेषण किया गया था जिसमें 1998 से 2018 तक झील का क्षेत्रफल 8.9 प्रतिशत कम हो गया था। जो कि एक समय झील 6786 हेक्टेयर में फैली हुई थी। मौसम के कारण भी झील के क्षेत्र में परिवर्तन होता रहता है।गर्मियों के समय यह झील बिल्कुल सूखने के कगार पर होती है।यह झील विविध प्रकार के जलीय पौधे के आश्रय के लिए भी जाना जाता था। शीतकाल में यहाँ विदेशो से आने वाले पक्षी झील में जल की कमी के कारण दूसरी झीलों की ओर रूख कर चुके हैं।पिछ्ले कुछ वर्षों से झील में जल संकट बढ़ता जा रहा है।इसका कारण यह है कि पर्याप्त मात्रा में बारिश का पानी झील में इकट्ठा न होना।पहले बारिश का पानी नालों के जरिए झील में गिरता था लेकिन अब उन नालों में गाद भर जाने से झील में सही ढंग से पानी नहीं पहुँच पाता है।बाढ़ में आसपास की मिट्टी झील में आने से लगातार झील की गहराई कम होती चली गई जिससे पानी जमा नहीं हो पाता है झील में। स्थानीय निवासी का कहना है कि समय रहते अगर कोई ठोस उपाय नहीं ढूँढा गया तो झील एक दिन विलुप्त हो जाएगा। आए दिन झील के भू स्वामित्व व मछुआरों के बीच विवाद व अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है।हालांकि सरकार व कुछ समाजिक संस्था द्वारा बहुत सारे कदम उठाये गए लेकिन न तो अतिक्रमण हट पाया न ही झील की स्थिति सुधर पायी। सरकार न तो झील का संरक्षण कर सकी न ही झील में गए भूमि के स्वामित्व को स्पष्ट करके उन्हें मुआवजा दे पायी। काॅवर झील हमारी अनमोल धरोहर है जिससे बचाकर रखना अति आवश्यक है।